Yog Dhyan Badri
योग-ध्यान बदरी
शीतकाल में जब बदरीशपुरी बर्फ की चादर ओढ़े रहती है, तब भगवान बदरी नारायण पांडुकेश्वर स्थित योग-ध्यान बदरी मंदिर और जोशीमठ के नृसिंह बदरी मंदिर में दर्शन देते हैं। आप हनुमान चट्टी, शंकराचार्य मठ में दर्शन संग औली में नैसर्गिक सौंदर्य और बर्फबारी का अद्भुत अनुभव भी कर सकते हैं।
ध्यान मुद्रा में है प्रतिमाः मान्यता है कि कपाट बंद होने के बाद बदरीनाथ धाम में देवर्षि नारद भगवान बदरी नारायण की पूजा करते हैं। भक्तों को दर्शन मिले इसलिए भगवान योग-ध्यान बदरी मंदिर और नृसिंह बदरी मंदिर में प्रवास करते हैं। कहा है जाता है कि योग-ध्यान बदरी मंदिर की स्थापना राजा पांडु द्वारा की गई
थी। वर्ष भर खुले रहने वाले मंदिर में भगवान विष्णु की कांस्य प्रतिमा ध्यान मुद्रा में स्थापित है।
नृसिंह अवतार की पूजा
जोशीमठ में भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार र की पूजा होती है। मान्यता है कि पांडवों ने अपनी स्वर्गारोहिणी यात्रा के दौरान जोशीमठ में नृसिंह मंदिर की स्थापना की, जबकि आदि शंकराचार्य ने यहां भगवान नृसिंह का विग्रह स्थापित किया । ऐसा भी कहा जाता है कि आठवीं सदी में राजा ललितादित्य ने अपनी दिग्विजय यात्रा में नृसिंह मंदिर का निर्माण कराया। एक वर्ष पूर्व श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति ने नृसिंह मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। यह मंदिर भी वर्षभर खुला रहता है। बदरीनाथ धाम के पूर्व धर्माधिकारी पंडित भुवन चंद्र उनियाल बताते हैं कि योग-ध्यान बदरी मंदिर और नृसिंह बदरी मंदिर में भगवान के दर्शनों का वही पुण्य है, जो बदरीनाथ धाम में है।
यहां टूटा था भीम का घमंड
पांडुकेश्वर से सात किमी पहले जोशीमठ की ओर हनुमान चट्टी है। यहां हनुमान जी का मंदिर है। यहीं हनुमान जी ने भीम के बलशाली होने का घमंड तोड़ा था।
अलकनंदा - धौली गंगा का संगम
जोशीमठ से सात किमी आगे पांडुकेश्वर की ओर विष्णु प्रयाग पड़ता है। यहां अलकनंदा और धौली गंगा के संगम पर भगवान विष्णु का मंदिर है। जोशीमठ में शंकराचार्य मठ है। कहते हैं कि यहां मौजूद कल्प वृक्ष के नीचे आदि शंकराचार्य को ज्ञान की प्राप्त हुई। कल्प वृक्ष यहां आज भी मौजूद है, जिसके नीचे ज्योतिश्वर महादेव विराजमान हैं।